भारत का पहला चंद्र मिशन / India's first lunar mission
चंद्रयान प्रथम (Chandrayaan-1) भारत का पहला मून मिशन जिसने दुनिया को चंद्रमा पर बर्फ और पानी के उपस्थिति के सबूत दिए
चंद्रयान प्रथम |
Dear पाठक "your time " के इस आर्टिकल में आप सभी का स्वागत है, उम्मीद है आप सभी स्वस्थ होंगे, आज का यह आर्टिकल इसरो के चंद्रयान प्रथम मिशन पर आधारित है उम्मीद है आप सभी को यहां आर्टिकल अवश्य पसंद आएगा,
धन्यवाद।
चंद्रयान प्रथम mission of moon
चंद्रयान प्रथम को इसरो द्वारा 22 अक्टूबर 2008 को पीएसएलवी सी -11 (PSLV-C11) की सहायता से श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था 18 दिनों के सफर के बाद यह स्पेसक्राफ्ट अपने निर्धारित स्थान पर पहुंच गया था यह स्पेसक्राफ्ट अपने साथ 11 पेलोडस को लेकर गया था जिसमें से भारत सहित अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण या पेलोडस थे। इन 11 payload's में से 5 payload's लोड इसरो के स्वदेशी थे तथा 6 अन्य विभिन्न देशों के थे। भारत के स्वदेशी payload's क्रमशः 1 से 5 तक के हैं।
- भू-भाग मानचित्रण स्टीरियो कैमरा (Terrain mapping stereo camera)
- हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग कैमरा (Hyper spectral imaging camera)
- लूनर लेजर रेंजिंग इंस्ट्रूमेंट (Lunar laser ranging instrument)
- उच्च ऊर्जा एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर (High energy x ray spectrometer)
- चंद्रमा प्रभाव जांच (Moon impact probe)
- चंद्रयान 1 एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर (Chandrayaan 1 x ray spectrometer)
- इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (Infrared spectrometer)
- उप केव परमाणु परावर्तक विश्लेषक (Sub-kev atom reflecting analyser)
- विकिरण खुराक मॉनिटर प्रयोग (Radiation dose monitor experiment)
- लघु सिंथेटिक एपर्चर रडार (Miniature synthetic aperture radar)
चंद्रमा की सतह पर रासायनिक, खनिज और फोटो-भूगर्भिक मानचित्रण के लिए स्पेसक्राफ्ट को चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए छोड़ दिया गया था। इस स्पेसक्राफ्ट या उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक चक्कर या कक्षाएँ बनाईं।
PSLV ROCKET 🚀 |
क्या था? चंद्रयान प्रथम का मून इम्पैक्ट प्रोब
भारत के चंद्रयान प्रथम मिशन में इसरो द्वारा एक डिवाइस लगाया गया था जिसका नाम मून इम्पैक्ट प्रोब यानी (MIP) था मून इंपैक्ट प्रोब को इसरो द्वारा 14 नवंबर 2008 को चंद्रमा की सतह पर उतारा गया था जो चंद्रमा की सतह पर पहुंचते ही क्रैश हो गया था लेकिन क्रैश होने से पहले इसने इसरो को काफी महत्वपूर्ण जानकारी भेज दी थी । मून इंपैक्ट प्रोब डिवाइस की मदद से ही पहली बार वैज्ञानिकों को चांद की सतह पर बर्फ तथा पानी होने की पुष्टि मिली थी और इसी के साथ चंद्रमा पर पहुंचने वाला भारत चौथा देश बन गया। इससे पहले अमेरिका, रूस और जापान ही ऐसा करने में कामयाब हो सके थे।
चंद्रयान प्रथम मिशन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
भारत का प्रथम चंद्र मिशन - चंद्रयान प्रथम
संचालक - इसरो (ISRO)
प्रक्षेपण तारीख - 22 अक्टूबर 2008
प्रक्षेपण रॉकेट का नाम - पीएसएलवी सी -11
PSLV - Polar Satellite Launch Vehicle
प्रक्षेपण स्थान - श्रीहरिकोटा
चंद्रयान प्रथम का जीवनकाल - 2 साल
मिशन की कुल लागत - 386 करोड़ रुपए
इसरो के अध्यक्ष - जी माधवन नायर
चंद्रयान प्रथम से संपर्क टूटा - 28 अगस्त 2009
चंद्रयान प्रथम की प्रमुख सफलता
इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान प्रथम मिशन के माध्यम से चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की खोज की थी
इसरो द्वारा 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 की लॉन्चिंग की गई. चंद्रयान प्रथम चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगा रहा था लगभग 22 दिन बाद 14 नवंबर 2008 को इसरो ने Chandrayaan-1 से मून इंपैक्ट प्रोब (Moon Impact Probe - MIP) को अलग किया और Moon Impact Probe चांद की सतह पर भेजा गया जोकि 25 मिनट के अंतराल में चांद की सतह पर पहुंच गया था Moon Impact Probe की गति लगभग 1.69 किलोमीटर प्रति सेकंड थी।
इतनी अधिक गति होने के कारण इसे कंट्रोल नहीं किया जा सका और यहां चांद की सतह से टकरा गया था. इस टकराव से मून इंपैक्ट प्रोब पूरी तरह से ध्वस्त हो गया. लेकिन उस टकराव से पहले उससे पहले मून इंपैक्ट प्रोब ने वह काम कर दिया, जिसने इतिहास रच दिया Moon Impact Probe ने क्षतिग्रस्त होने से पहले ही इतिहास रच दिया था. उसने चांद केंद्र चीनी ध्रुव में पानी की मौजूदगी के सबूत इसरो को भेज दिए थे यह पानी चांद की सतह में बर्फ के रूप में मौजूद है।
मून इंपैक्ट प्रोब चंद्रमा पर कहां गिरा था?
इसरो के अनुसार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित शैक्लेटॉन क्रेटर मून इंपैक्ट प्रोब गिरा था। इसरो के वैज्ञानिकों को मून इंपैक्ट प्रोब के द्वारा ही सितंबर 2009 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित शैक्लेटॉन क्रेटर में पानी होने के साक्ष्य प्राप्त हुए और यह पानी बर्फ के रूप में मौजूद ।
मून इंपैक्ट प्रोब ने आखिर कैसे? बताया कि चंद्रमा की सतह पर पानी मौजूद है।
इसरो द्वारा मून इंपैक्ट प्रोब पर तीन उपकरण लगाए गए थे, जोकि निम्न है:-
- रडार अल्टीमीटर,
- वीडियो इमेजिंग सिस्टम और
- मास स्पेक्ट्रोमीटर।
इन तीनों उपकरणों ने चंद्रयान प्रथम के ऑर्बिटल से अलग होते हैं अपना काम शुरू कर दिया था और इन्हें चंद्रमा की सतह पर पहुंचने में 25 मिनट का समय लगना था और इन्हीं 25 मिनटों के समय अंतराल के भीतर ही इन तीन उपकरणों ने डाटा भेजना शुरू कर दिया था। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर क्रैश होने से पहले इन तीनों ने इसरो के वैज्ञानिकों को चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी होने की पुष्टि कर दी थी।
आखिर कैसे? इसरो का चंद्रयान प्रथम से संपर्क टूटा
स्पेसक्राफ्ट की कक्षा 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था लेकिन19 मई 2009 के दौरान इसरो के द्वारा कक्षा को चंद्रमा की सतह से 200 किमी तक बढ़ा दिया गया था। क्योंकि सूर्य की अत्यधिक रेडिएशन तथा तापमान के कारण स्पेसक्राफ्ट का तापमान बहुत अधिक बढ़ रहा था जिससे हमारे स्पेसक्राफ्ट के कई महत्वपूर्ण अंदरूनी पार्ट्स पुर्जे सूर्य की गर्मी के कारण खराब हो रहे थे तापमान को कम करने के लिए ISRO ने स्पेसक्राफ्ट की कक्षा 200 किलोमीटर तक बढ़ा दी थी लेकिन इससे कुछ फायदा नहीं हो सका क्योंकि तब तक स्पेसक्राफ्ट के काफी अंदरुनी पुर्जे खराब हो चुके थे । इसरो ने इस मिशन के लगभग सभी प्रमुख उद्देश्यों का सफल समापन कर लिया था। इस मिशन की निर्धारित सीमा 2 साल रखी गई थी परंतु 312 दिनों के सफलतापूर्वक संचालन के बाद 28 अगस्त 2009 को अचानक हमारा संपर्क स्पेसक्राफ्ट से टूट गया था इसरो ने फिर से संपर्क बनाने के कई अथक प्रयास किए लेकिन वे सफल नहीं हो पाए और इसी के साथ हमने स्पेसक्राफ्ट से हमेशा - हमेशा के लिए अपना संपर्क खो दिया था।
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❣️❣️
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