अंतरिक्ष की वह जगह जहां इंसान कई सालों से रह रहा है, कौन सी है,वहां जगह? और कैसे इंसान वहां रहते हैं? / ISS in Hindi / International space station



Dear पाठक "your time" मे आप सभी का स्वागत है । उम्मीद है, आप सभी स्वस्थ होंगे। "your time " विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, तथा महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बारे में रोचक जानकारी आप तक आर्टिकल के माध्यम से पहुंचाता है।आज के इस आर्टिकल में हम अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ISS ( International space station) के बारे में कुछ रोचक जानकारी आपसे साझा करेंगे उम्मीद है, आपको ISS पर यह आर्टिकल पसंद आएगा।





इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के बारे में जानने से पहले हमें यह जानना जरूरी होगा, कि आखिरकार ISS को बनाने की कहानी कब और कैसे शुरू हुई
नासा (NASAअमेरिका) द्वारा पृथ्वी की कक्षा में 14 मई, 1973 को दुनिया का पहला अंतरिक्ष केंद्र ( space Center) अंतरिक्ष में भेजा गया था। जिसका नाम स्काईलैब था ।स्काईलैब ( skylab) ने 1973 से 1978 तक ठीक ढंग से काम किया था, लेकिन 1978 में अंतरिक्ष में उठे तूफान के कारण स्काईलैब के सोलर पैनल जल गए जिसके कारण स्काईलैब के इंजन ने काम करना बंद कर दिया था और किसी भी स्पेस स्टेशन को कार्य करने के लिए उसके इंजन का सुचारू रूप से कार्य करना अनिवार्य होता है।
स्काई लैब के इंजन के बंद होने के कारण स्काई लैब का ऑर्बिट कम होता गया और यहां पृथ्वी की ओर बढ़ने लगा नासा द्वारा यह चेतावनी दी गई थी, कि स्काई लैब कभी भी पृथ्वी पर गिर सकता है लेकिन यहां अनुमान लगाना कठिन हो गया था, कि यह पृथ्वी पर किस स्थान पर गिरेगा।


स्काई लैब ने कैसे भारत ने मचाया था आतंक? /How India created terror by Sky Lab?


स्काई लैब गिरने की चर्चा हफ्तों पहले से शुरू हो गई थी। जिसके डर के कारण स्काई लैब का नाम बच्चों - बच्चों की जुबां पर चढ़ गया था ।
नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार स्काई लैब के हिंद महासागर में गिरने की संभावना अत्यधिक थी। जिसके कारण यह अफवाह फैल गई की स्काई लैब भारत पर भी गिर सकता है, और भारतीय लोगों में दहशत का माहौल फैल गया, भारतीय लोगों को भारी जानमाल के नुकसान का डर सताने लगा। यह तक कहा जाने लगा की "एक दिन विज्ञान की उपलब्धियां मानव जाति के विकास मे नहीं अपितु विनाश का कारण बनेगी"


 
भारत में इस तरह के माहौल को देखते हुए अमेरिका ने स्काई लैब से जुड़ी हर एक बात को भारतीय मीडिया को बताने के लिए एक विशेष दूत की नियुक्ति की थी। जिसके लिए अमेरिका ने थॉमस को चुना, जिसने नासा द्वारा इस कार्य की जानकारी भारतीय मीडिया से साझा की ।

स्काई लैब का अंत





आखिरकार 11 जुलाई 1979 को वह दिन आ ही गया जब स्काई लैब पृथ्वी से टकराने वाला ही था, इसके चलते भारत में सभी जगह पर हाई अलर्ट जारी कर दिया गया था। नासा ने स्काई लैब को बूस्टर रॉकेट की सहायता से हिंद महासागर की और धकेला था । खुशकिस्मती से स्काई लैब का कुछ भाग हिंद महासागर तथा कुछ ऑस्ट्रेलिया के निर्जन इलाके में गिरा जिससे किसी भी प्रकार के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ । लेकिन अगर स्काई लैब किसी आबादी वाले स्थान पर गिरता तो यकीनन बहुत बड़ी मात्रा में जान मान का नुकसान होता और इतिहास में विज्ञान हमेशा हमेशा के लिए कलंकित हो जाती है


नासा का फ्रीडम स्पेस स्टेशन/NASA's Freedom Space Station


  1984 में अमेरिका ने एक नए स्पेशल स्टेशन बनाने का ऐलान किया जिसका नाम फ्रीडम स्पेस स्टेशन रखा गया नासा द्वारा इसका डिजाइन तथा इस पर इंजीनियरिंग R&D ( Research and Development) कार्य शुरू कर दिया गया, लेकिन इसका खर्चा इतना अधिक था, कि यह किसी एक देश के द्वारा बनाया जाना संभव नहीं था जिस कारण यह स्पेस स्टेशन कभी बनकर तैयार नहीं हो पाया ।



Now It's time to International Space Station's entry in the world / अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन

International space station (ISS) 






ISS ( International space station) जमीन410 किलोमीटर दूर आसमान में पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है । यह स्पेस स्टेशन पिछले 24 सालों से हमारी पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूम रहा है । देखने में यह स्पेस स्टेशन बहुत छोटा लगता है, लेकिन असल में इसकी साइज एक फुटबॉल स्टेडियम जितना बड़ा है और इसका वजन लगभग 4,20,000 kg के बराबर है ।लेकिन सवाल ये उठता है कि फुटबॉल ग्राउंड के बराबर बडा स्पेस स्टेशन आखिरी स्पेस में गया कैसे? इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन इंसानों द्वारा बनाई गई दुनिया की अब तक की सबसे महंगी चीज है ।इस स्पेस स्टेशन को बनाने में लगभग 160 बिलीयन डॉलर्स का खर्चा आया।




आईएसएस ( ISS) बनाने का मकसद क्या है? इसमें रहने वाले एस्ट्रोनॉट बिना ग्रेविटी के कैसे रहते हैं? इनको खाना, पानी तथा ऑक्सीजन कैसे मिलती हैं?


ISS में सबसे ज्यादा हिस्सा सोलर पैनल का है जो सूर्य की किरणों से उसके इंजन को चलाने में मदद करता है।आईएसएस के जिस पार्ट में एस्ट्रोनॉट रहते हैं, वह हिस्सा लगभग 6 बैडरूम के बराबर है ।आईएसएस लगभग 2800 किलोमीटर /घंटे की स्पीड से पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। यह स्पीड इतनी अधिक है क ISS 24 घंटों में पृथ्वी के 16 चक्कर लगा सकता है। आईएसएस और इसमें रहने वाले एस्ट्रोनॉट का एक ही मकसद है, जो एक्सपेरिमेंट करना है। एसएस में अमेरिका और रूस की बनाई हुई लैब है। जिन पर यह अपने एक्सपेरिमेंट करते हैं। जिनको स्पेस लैबोरेट्री कहा जाता है । इन्हीं लैब में एस्ट्रोनॉट जमीन से लाई गई चीजों पर एक्सपेरिमेंट करते हैं, कि बिना ग्रेविटी के इन पर क्या असर पड़ेगा आईएसएस पर टोटल 6 एस्ट्रोनॉट रहते हैं। एसएस में बने कैप्सूल में एस्ट्रोनॉट के लिए खाने-पीने से लेकर एक्सरसाइज करने तक की सारी सुविधाएं है एसएस में अगर किसी चीज की कमी है, तो वह है ग्रेविटी, ग्रेविटी न होने के कारण एस्ट्रोनॉट को अपने भार का अनुभव नहीं होता है, और ना ही इनको बैठने और सोने की कोई फीलिंग आती है। एक कैप्सूल से दूसरे कैप्सूल में जाने के लिए यह अपने पैरों को ढकेलते हैं, और हवा में तैरते हुए दूसरे कैप्सूल में जाते हैं ।यह अपने साथ पके पकाये पैक्ड फूड को लेकर जाते हैं ।स्पेस स्टेशन में एस्ट्रोनॉट को रोजाना कम से कम 2 घंटे एक्सरसाइज करनी पड़ती है वरना बिना ग्रेविटी के कारण इनका शरीर सुस्त पड़ जाती है। स्पेस स्टेशन में एस्ट्रोनॉट नहाते तो जरूर है लेकिन नहाने के लिए उनके पास पानी नहीं होता है, इनके नहाने के लिए एक विशेष प्रकार का शैंपू बनाया जाता है, जिसके लिए पानी की आवश्यकता नहीं होती है। इस शैंपू को शरीर पर लगाने के बाद टाउल मात्र से ही साफ किया जाता है। अगर एस्ट्रोनॉट को कभी किसी कारणवश ISS की मेंटेनेंस के लिए स्पेस में जाना हो तो इनके लिए एक विशेष प्रकार का सूट तैयार किया जाता है । जिसको पहनकर ही एस्ट्रोनॉट स्पेस में बाहर जा सकते हैं ।


स्पेस सूट का महत्व


स्पेस में 200 डिग्री सेंटीग्रेड से -200 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान बदलता रहता है यह सूट एक विशेष मेकैनिज्म से बनाया जाता है जो अधिक सर्दी और अधिक गर्मी होने से एस्ट्रोनॉट को बचाता है स्टेज सूट में एस्ट्रोनॉट के लिए ऑप्शन गैस की व्यवस्था के साथ-साथ पानी की व्यवस्था भी होती है इस सूट में टॉयलेट की सुविधा भी होती हैस्पेस सूट का कमाड सीधे अंतरिक्ष यात्री के हाथ में होता है। स्पेस सूट में लगे हेलमेट में बेहद शक्तिशाली कैमरा लगा होता है,




आईएसएस में सोने की व्यवस्था

आईएसएस में सोने के लिए छोटे-छोट़े केविन बने होते हैं जिसमें एस्ट्रोनॉट खुद को बांध कर सो जाते हैं ।

एस्ट्रोनॉट के लिए भेजे जाने वाला खाना


आईएसएस के लिए बनाया जाने वाला खाना नासा फूड साइंटिस्ट द्वारा बनाया जाता है, और यह खाना ऐसा बनाया जाता है, ताकि इसका वजन कम से कम हो और इसको 6 से 7 महीने तक के लिए स्टोर भी किया जा सके ।स्पेस स्टेशन में 1 किलो खाने को पहुंचाने की कीमत 7 से 8 लाख तक आ जाती है, और इन खानों में यह विशेष ध्यान दिया जाता है कि इनमें सारे पोस्टिक तत्व भी मौजूद हो। नासा के फूड साइंटिस्ट एस्ट्रोनॉट के खाना बनाने के बाद इस खाने को फ्रिज ड्राइंग प्रोसेस द्वारा फ्रिज करते हैं ।इस प्रोसेस से इस खाने का लगभग सारा पानी सोख लिया जाता है। जिससे इनका वजन कम हो जाता है ।इसके बाद इस खाने को पैकिंग मशीन से पैक कर के पैकेट के अंदर से सारी हवा भी निकाल दी जाती है और इस खाने को नासा स्पेस स्टेशन में अपने सप्लाई सिग्नस (cygnus) के द्वारा भेजता है


कैसे बनाया जाता है? आई एस एस में पीने का पानी


आई एस एस में पीने के पानी के लिए वाटर रीसाइक्लिंग सिस्टम WATER RECYCLING SYSTEMS लगा होता है, जो स्पेस स्टेशन में वेस्ट वाटर (Human waste) को फिल्टर करके पीने के योग्य बनाता है

आई एस एस में ऑक्सीजन कहां से आती है हैं? 

आई एसएस मे आर्टिफिशियल ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है । इसमें ऑक्सीजन बनाने के लिए भी एक सिस्टम लगाया गया है। स्पेस स्टेशन में इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए ऑक्सीजन को बनाया जाता है।इसको बनाने के लिए सोलर पैनल से मिलने वाली बिजली को पानी से गुजार करके इलेक्ट्रोलिसिस प्रोसेस के द्वारा ऑक्सीजन को बनाया जाता है।



आईएसएस को स्पेस में मॉड्यूल  जोड़ जोड़ कर बनाया गया था। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को 1998 में लांच किया गया था जो कि कुछ इस प्रकार दिखता था।







और 2011 आते-आते आईएसएस अपने फाइनल सेब में आ गया और इसमें इसके सारे मॉडल्स को जोड़ दिया गया था और जो अब कुछ इस प्रकार दिखता है।



आई एस एस के अमेजिंग फैक्ट

  •  आई एस एस सोलर पैनल की मदद से 1 दिन में 120 किलो वाट की इलेक्ट्रिसिटी बनाता है।
  • आई एसएस में एस्ट्रोनॉट के सोने के लिए 6 केबिन बने हुए हैं एक जिम का केबिन और दो बाथरूम भी बने हुए है।
  • आई एसएस में अब तक 239 एस्ट्रोनॉट रहे चुके हैं जो अलग-अलग देशों से थे। लगभग 19 देशों के एस्ट्रोनॉट अब तक आई एस एस में रह चुके हैं
  • आई एस एस का आकार इतना बड़ा है, कि इसको जमीन से देखने के लिए टेलिस्कोप की भी आवश्यकता नहीं है ।आई एस एस में मौजूद एस्ट्रोनॉट 24 घंटे में 16 बार सूर्य उदय और 16 सूर्यास्त देख सकते हैं।
  • क्रिस्टीना कोच बनी सबसे लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाली महिला, (328 दिनों तक)





Your Time

This is Kapil Nautiyal, Blogger, Entrepreneur, Mechanical Engineer

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post