Dear पाठक "your time " के इस आर्टिकल में आप सभी का स्वागत है, उम्मीद है आप सभी स्वस्थ होंगे, आज का यह आर्टिकल इसरो के महान वैज्ञानिक नंबी नारायण जी पर आधारित है उम्मीद है आप सभी को यहां आर्टिकल अवश्य पसंद आएगा, आप अपने सुझााव के लिए comment अवश्य करें धन्यवाद ।
आखिर कौन थे? नंबी नारायण, ISRO मैं इनका क्या योगदान रहा?
एस. नंबी नारायणन जी वैज्ञानिक जगत में एक जाना माना नाम है। इनका जन्म 12 दिसंबर 1941 को एक तमिल फैमिली में हुआ था। नंबी नारायणन ने शुरुआती शिक्षा अपने स्थानीय स्कूलों से ली थी । अपनी आगे की पढ़ाई के लिए मेधावी छात्र नंबी ने केरला के तिरुवनंतपुरम के इंजीनियरिंग कॉलेज डिग्री ली। , जिसके बाद वे अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी चले गए। जहां उन्हें रॉकेट की तकनीकी को समझा।
इसरो तथा देश के लिए नंबी नारायणन का योगदान
अमेरिका से भारत लौटने के बाद नंबी नारायणन ने इसरो में काम करना शुरू किया। भारत में लिक्विड फ्यूल राकेट टेक्नोलॉजी लाने मे नंबी नारायण का ही विशेष योगदान था । इससे पहले भारत सॉलिड प्रोपेलेंट राकेट टेक्नोलॉजी पर निर्भर था, लेकिन 1970 में नंबी नारायण ने लिक्विड फ्यूल राकेट टेक्नोलॉजी पर कार्य किया और इसके साथ ही उन्होंने देश में ईंधन रॉकेट प्रौद्योगिकी की शुरुआत भी कर दी थी । जिसका उपयोग बाद में इसरो ने अपने कई रॉकेटों के लिए किया था, जिस मुख्यता पीएसएलवी तथा जीएसएलवी शामिल है । नंबी नारायणन ने इस दौरान विक्रम साराभाई, सतीश धवन और एपीजे अब्दुल कलाम के साथ भी इसरो में काम किया था।
कैसे? ISRO के वैज्ञानिक नंबी नारायण को झूठे जासूसी केस में फसाया गया
उस वक्त भारत रॉकेट की एक नई टेक्नोलॉजी पर कार्य कर रहा था और इसरो के डायरेक्टर उस समय लंबी नारायण थे इस टेक्नोलॉजी में रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन पर कार्य किया जा रहा था जो रॉकेट को अंतरिक्ष तक लेकर जाए भारत इस समय अमेरिका और फ्रांस से महंगे दामों पर रॉकेट को अंतरिक्ष ले जाने के लिए क्रायोजेनिक इंजन को खरीदा करता था लेकिन उसी दौरान रूस हमें क्रायोजेनिक इंजन देने तथा उसकी टेक्नोलॉजी साझा करने के लिए रूस और भारत के मध्य एक समझौता होता है लेकिन अमेरिका और फ्रांस नहीं चाहते थे कि रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन दे और उसकी टेक्नोलॉजी को साझा करें क्योंकि भारत को अमेरिका या फिर फ्रांस क्रायोजेनिक इंजनओं को बड़े महंगे दामों पर बेचा करता था और रूस ने अमेरिका तथा फ्रांस के इस दबाव के तहत उस समझौते को कैंसिल कर दिया और भारत को क्रायोजेनिक इंजन की टेक्नोलॉजी देने से इंकार कर दिया लेकिन भारत को चार क्रायोजेनिक इंजन को सस्ते दाम में देने की बात पर रूस ने हामी भर दी थी इस समय इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायण क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे थे और उन्होंने यह दावा किया था कि बहुत जल्द भारत का अपना एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन होगा जिसकी मदद से इसरो रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजेगा यहीं से नंबी नारायण के खिलाफ एक इंटरनेशनल साजिश की जाती हैै।
बात है 1994 की इस समय केरल की पुलिस एक महिला को तिरुवंतपुरम से गिरफ्तार करती है जिसका नाम मरियम था मरियम से पूछताछ के बाद केरल पुलिस यह बताती है की नंबी नारायण जो इसरो के साइंटिस्ट है उनके द्वारा क्रायोजेनिक इंजन की टेक्नोलॉजी पाकिस्तान सहित अन्य कई देशों को बेचा जा रहा है केरल पुलिस इसरो के तीन साइंटिस्ट को गिरफ्तार करती है जिनमें से एक नंबी नारायण भी थे और मीडिया में यह खबर फैल जाती है, कि कैसे? इसरो के साइंटिस्ट अपने ही देश के साथ जासूसी तथा गद्दारी कर रहे हैं ।मीडिया ने जांच रिपोर्ट आने से पहले ही इन तीनों साइंटिस्टों को गद्दार घोषित कर दिया था। फिर केरल पुलिस से इस केस को सीबीआई अपने अंडर मे ले लेती है, क्योंकि यह मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ था। सीबीआई ने 2 साल बाद 1996 में अपनी जांच पूरी की और केरल के लोअर कोर्ट में सीबीआई ने अपनी जांच को सौंप दिया था । सीबीआई ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह कहा था, कि नंबी नारायण तथा उनके साथीयों के साथ साथ मरियम ये सभी बेकसूर तथा निर्दोष है और इनके खिलाफ देशद्रोह की एक झूठी मनगढ़ंत कहानी बनाई गई थी ।केरल सरकार ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को चैलेंज किया और कहा कि यह रिपोर्ट गलत है। और सुप्रीम कोर्ट से इस केस कि दोबारा जांच करवाने के लिए कहा, जिसको केरल सरकार अपने स्टेट की जांच एजेंसियों से ही करवाना चाहती थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार की इस मांग को ठुकरा दिया और नंबी नारायण को बाइज्जत बरी कर दिया था। नंबी नारायण ने सुप्रीम कोर्ट में उन पुलिसवालों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और नंबी नारायण अपने इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट के चक्कर काटते रहे। अंततः 22 साल बाद 14 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच बैठी जिन्होंने नंबी नारायण के साथ-साथ दो अन्य वैज्ञानिकों को इसरो के अन्य वैज्ञानिकों की तरह ही सम्मान दिलाने का आर्डर सुनाया तथा उन पुलिस कर्मियों पर जिन्होंने नंबी नारायण पर झूठा मुकदमा चलाया उनसे 75 लाख की रिकवरी का आदेश केरल सरकार को दिया । और इस 75 लाख की राशि को नंबी नारायण को देने की बात कही गई इसके साथ साथ यह आदेश भी दिया की नंबी नारायण तथा उनके साथियों के खिलाफ जितने भी झूठे आर्टिकल छापे गये जिसमें उन्हें इसरो का गद्दार वैज्ञानिक कहा गया है, इन सब को डिलीट करने का और उनको हटाने का आदेश दिया गया।
अगर नंबी नारायण पर यहां झूठा मुकदमा ना चलाया जाता तो भारत 15 साल पहले ही रॉकेट के इस क्रायोजेनिक इंजन को बना लेता क्योंकि बाद में भारत ने नंबी नारायण के फार्मूले पर ही इस क्रायोजेनिक इंजन को बनाया था।
नंबी नारायण को कुछ हद तक इंसाफ तब मिला जब उन्हें 2019 मे भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अगर नंबी नारायण पर यहां झूठा मुकदमा ना चलाया जाता तो भारत 15 साल पहले ही रॉकेट के इस क्रायोजेनिक इंजन को बना लेता क्योंकि बाद में भारत ने नंबी नारायण के फार्मूले पर ही इस क्रायोजेनिक इंजन को बनाया था।
नंबी नारायण को कुछ हद तक इंसाफ तब मिला जब उन्हें 2019 मे भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
यह भी जाने/ देश के महान वैज्ञानिकों में से एक नंबी नारायण जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- वर्ष 1966 में नंबी नारायणन ने सर्वोच्च अनुसंधान केंद्र ISRO को ज्वाइन किया।
- वर्ष 1970 में नंबी नारायण जी तथा साथी वैज्ञानिक उडुपी रामचंद्र राव (U. R. Rao)
और सतीश धवन जी
के साथ मिलकर लिक्विड फ्यूल टेक्नोलॉजी पर रॉकेट इंजन की खोज की।
- 1994 में नंबी नारायण पर क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी के अपने दुश्मनी देशों को बेचने के आरोप में फंसाया गया तथा 1996 में सीबीआई ने जांच पर नमो नारायण को निर्दोष पाया तथा सर्वोच्च अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपी इसके बाद वर्ष 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने नंबी जी पर लगे सभी आरोपों को गलत और निराधार पाया और तुरंत या फैसला सुनाएगी नंबर नारायण को रिहा किया जाए और जिन पुलिस अधिकारियों ने नंबर नारायण को झूठे केस में फसाया उन पर कार्रवाई की जाए।
- इन्होंने 1970 मे विकास इंजन के डेवलपमेंट में अहम योगदान निभाया जोकि तरल प्रणोदन प्रणाली पर आधारित था
Vikas rocket engine |
इसरो साइंटिस्ट नंबी जी ने कहा था कि " भारत को अगर मैन स्पेस मिशन करना है, तो भारत को लिक्विड फ्यूल इंजन पर काम करना होगा "
क्या है क्रायोजेनिक तकनीक (Cryogenic Technology)है।
रॉकेट में उपयोग किया जाने वाला ईंधन अधिक गर्मी या उच्च तापमान पर अपना कार्य करते हैं । जिस कारण रॉकेट पर उसके ही ईंधन से जलने का खतरा बना रहता है ।वैज्ञानिकों ने इससे निजात पाने के लिए रॉकेट इंजन में लिक्विड फ्यूल का उपयोग करना प्रारंभ कर दिया। इस फ्यूल का काम क्रायोजेनिक इंजन में प्रयोग होने वाले फ्यूल के तापमान को सामान्य रखना या कम से कम रखना था जिससे कि रॉकेट को जलने से बचाया जा सके क्रायोजेनिक इंजन में इंधन के रूप में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों के मिश्रण का उपयोग किया जाता है। क्रायोजेनिक रॉकेट फ्यूल का तापमान - 238 डिग्री फारेनहाइट होना चाहिए क्योंकि इतने तापमान पर ही हाइड्रोजन गैस अपनी liquid form मे रहता है।
Cryogenic rocket engine |
Well done sir
ReplyDeleteGreat resurch
research
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